मोपाल,
मुख्यमंत्री के अपने विभाग जनसंपर्क से संपादक लघुसमाचारपत्रो के मालिक जो अखबार को चलाने दिन रात जुटे रहते है आजकल सरकार की रीतीनीती से परेशान हो गये है वैसे तो लगभग 4 साल से सभी परेशान है न जनसंपर्क मे मीटिंग होती है न अधिमान्यता न विज्ञापन मिलते है छोटे अखबारों को ओर न ही ईज्जत आंदोलन ही मजबूरी है क्योंकि विभाग ही मुख्यमंत्री जी का है
ऐसी क्या मुसीबत आ गई जो भारत के चौथे स्तंभ को सड़कों पर आना पड़ा 13 दिसंबर के ठीक 10:30 भोपाल के पत्रकार भवन से एक रैली के रूप में स्थित बाणगंगा के जनसंपर्क के चौराहे पर डीजे के सांथ सेकड़ो पत्रकारों के साथ अपनी मांगों को लेकर पत्रकार गण जिसे कहा जा सकता है लघु पत्र-पत्रिकाओं के मालिक एवं संपादक ने अपनी मांगों का एक दस्तावेज जनसंपर्क अधिकारी को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा गया ज्ञापन में पत्रकारों की समस्या को लेकर काफी चिंतित दिखाई दिए ऐसा कई बार देखने को मिला गया है मगर समय गुजर जाने के बाद पत्रकारों की कोई मांग अभी तक शायद पूरी हुई हो ऐसे कई संगठन ने अपनी मांगों को लेकर जनसंपर्क में काफी प्रदर्शन किए गए हैं मगर आज तक अपनी मांगों का कोई भी मांग पूरी नहीं हुई बस खाली आश्वासन दिया जाता है शायद मध्यप्रदेश शासन इससे अनभिज्ञ है अगर कोई मांग पूरी होती है तो संगठन के एक सशक्त को बुलाकर एक दो पेज का विज्ञापन सौंप दिया जाता है जिससे वह जनसंपर्क की बहा बहा बाय के पुल बांधने लगता है ओल्ड जो पत्रकार गण इन संगठन के मालिकों से अनुरोध है वह समझते हैं हमारा पूरा काम हो चुका है शायद अगले महीने या एक-दो हफ्ते में हमें भी कुछ मांगो का फायदा मिलने लगेगा मगर समय निकलता है निकलते ही चले जाता है फिर वही समस्या को हल करने के लिए दूसरा संगठन फिर जनसंपर्क के चक्कर लगाने लगता है कभी जनसंपर्क विभाग कभी लघु पत्र-पत्रिकाओं का समस्या हल पूरा कर देता तो दूसरा संगठन क्यों अपना समस्या ले लेकर आता मगर जनसंपर्क विभाग पूरा भ्रष्ट हो चुका है और जनसंपर्क विभाग पूरा की पूरा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद स्वयं जनसंपर्क मंत्री बने बैठे हैं अगर शिवराज जी चाहते तो यह विभाग किसी और मंत्री को भी दे सकते थे मगर यह सा नहीं किया इसी कारण बुधनी के एक कार्यक्रम में खुद स्वयं मंत्री शिवराज जी कह रहे थे मीडिया मंत्री के कार्यक्रम में क्यों नहीं दिख रही है साहित्य ही वजह हो सकती है लघु पत्र-पत्रिकाओं की क्या स्थिति है यह कैसे समझेंगे मंत्री गण अगर अभी भी समय कुछ बचा है 2023 के पहले पहले लघु पत्र-पत्रिकाओं के मांगों को पूरा नहीं किया गया है
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