दूर दूर से श्रद्धालु और शिव बारात लेकर भक्त पहुंचे प्राचीन नील कंठेश्वर महादेव मंदिर उदयपुर
समाजसेवियों ने जगह जगह स्टाल लगाकर भक्तों को , की प्रस
गंजबासौदा/विदिशा
उदयपुर स्थित प्राचीन नील कंठेश्वर महादेव मंदिर, स्वयं प्रगटेश्वर महादेव मंदिर गमाखर सहित सभी मंदिरों और घर घर महाशिवरात्रि का पावन पर्व उत्साह और उमंग पूर्वक मनाया गया।
प्रशासन और पुलिस द्वारा दूर दूर से उदयपुर आने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार की परेशानी ना हो पूर्व से ही पुख्ता इंतजाम किए गए थे। 200 सुरक्षा जवानों के साथ एसडीएम विजय राय, एसडीओपी मनोज कुमार मिश्रा सहित कर्मचारियों के साथ मंदिर प्रागंण में उपस्थित रहे। नील कंठेश्वर महादेव के दर्शन के लिए तीन दरवाजों से प्रवेश रखा गया।
रात्रि 2 बजे से ही भक्तों का उदयपुर स्थित प्राचीन नील कंठेश्वर
महादेव मंदिर में तांता लगा रहा। दूर दूर से भक्त शिव बारात के साथ नाचते गाते मंडलियों के साथ उदयपुर पहुंचकर शिवजी का अभिषेक किया। रास्ते में धर्म प्रेमी बंधुओं ने भक्तों का स्वागत किया। दोपहर 5 बजे तक हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने
आराम से दर्शन किए शाम तक यह आंकड़ा लाख तक पहुंच सकता है। इसके अलावा शिवधाम गमाकर सहित घर घर में शिव का अभिषेक पूजा अर्चना कर हजारों श्रद्धालुओं ने धर्म लाभ लिया। और मनोकामना के लिए व्रत उपासना की। जिला बनाओ अभियान के संयोजक शैलेन्द्र सक्सेना ने भी गंज बासौदा को जिला बनाने पेढ भरे।
हिंदू पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि कई कारणों से महत्व रखती है। एक मान्यता यह है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था, और यह त्योहार उनके दिव्य मिलन का जश्न मनाने के लिए हर साल मनाया जाता है। साथ ही यह शिव और शक्ति के मिलन का भी प्रतीक है
तहसील गंज बासोदा से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विश्व विख्यात उदयपुर में बाबा विश्वनाथ नील कंठेश्वर महादेव के रूप में विराजे है। एक हजार वर्ष पुराना यह मंदिर दूर दूर तक अपनी अद्भुत नक्काशी कलाकृति के लिए विख्यात है। इस मंदिर का निर्माण परमार राजा उदयादित्य ने करवाया था। यह मंदिर 1059 ई. का है। ग्वालियर राज्य के महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने वर्ष 1929 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इसके अलावा गंज बासौदा तहसील से ही मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राचीन शिवधाम गमाकर में स्वयं प्रगटेश्वर महादेव पहाड़ी की गुफा के अंदर विराजे है। जिसकी मान्यता है कि लक्ष्मण जी को जब शक्ति लगी और हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आ रहे थे तो पहाड़ का एक टुकड़ा यहां आकर गिरा था और तभी से भोलेनाथ स्वयं प्रगटेश्वर मंदिर में विराजे है।
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