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बुधवार, 12 मार्च 2025

ईश्वरीय रंग में रंगना ही श्रेष्ठ होली मनाना है- ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी

ईश्वरीय रंग में रंगना ही श्रेष्ठ होली मनाना है- ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी*
होली अर्थात होली सो होली बीती को बिंदी लगाना
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गंजबासौदा,
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय चर्च वाली गली बरेठ रोड स्थित सेवाकेंद्र में होली मिलन समारोह का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
 ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने कार्यक्रम के प्रारंभ में सभी को चंदन का तिलक लगाकर होली की बधाई देते हुए कहा कि होली के पावन पर्व पर एक दूसरे पर रंग डालने की प्रथा है। ज्ञान को रंग कहा जाता है। ज्ञानी मनुष्य का संघ अर्थात संबंध संपर्क में रहने वाली आत्माओं को भी ज्ञान का रंग चढ़ता है, उन्हें चोला धारण करने वाली चोली अर्थात आत्मा को परमात्मा से संबंध जुड़वा कर उसकी लाली से लाल करता है अर्थात् शक्ति लेने की विधि बताता है। इस सृष्टि में दो ही रंग है एक माया का रंग और दूसरा ईश्वरीय रंग। इस रंगमंच पर हर एक मनुष्य इन दोनों में से एक ना एक रंग में तो रगंता ही है। निःसंदेह ईश्वरीय रंग में रंगना श्रेष्ठ होली मनाना है क्योंकि इस रंग में रंगा हुआ मनुष्य ही योगी है। माया के रंग में रंगा हुआ मनुष्य तो भोगी है। आजकल होली के दिन छोटे-बड़े सभी मिलकर एक दूसरे के साथ होली खेलते हैं यहां तक कि जबरदस्ती भी रंग लगाते हैं, वास्तव में लगाना तो चाहिए ज्ञान का रंग, परन्तु देह अभिमानी लोग भौतिकवाद के कारण आध्यात्मिकता को तिलांजलि देकर भौतिक रंग एक दूसरे को लगाकर देश के करोड़ों रुपए और कपड़े खराब कर देते हैं ऐसी होली खेलने का क्या लाभ, जिससे खेल ही खेल में अनेक लोगों का दिल दुखता है। स्थूल रंग वाली होली से तो अधिकतर लड़ाई ही होती है। छोटे बच्चे बड़ों की पगड़ी उतारते हैं बड़े भी एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं। अफसोस है कि होली के ऐसे पावन पर्व को लोगों ने कैसे हुल्लड़बाजी का पर्व बना दिया है। ब्रह्माकुमारी रुकमणी दीदी ने बताया कि होली का त्योंहार कलयुग के अंत और संगम के आदि के संगम समय की याद दिलाता है, क्योंकि तब परमपिता परमात्मा शिव ने अवतरित होकर ज्ञान होली खेली और आत्माओं ने उनके साथ मंगल मिलन मनाया। हिरण्कश्यप को वरदान मिला हुआ था कि दिन हो,न रात यह संगम समय की ही याद दिलाता है, क्योंकि सतयुग और त्रेतायुग ब्रह्मा का दिन और द्वापर तथा कलयुग ब्रह्मा की रात कहा जाता है वर्तमान समय हम ब्रह्माकुमार और कुमारीयां  परमपिता परमात्मा से प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान की होली मंगल मिलन मना रहे हैं, क्योंकि अभी संगमयुग चल रहा है। परमपिता परमात्मा स्वयं पिताश्री ब्रह्मा के परकाया प्रवेश करके ज्ञान और राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं। परंतु इस रहस्य से अनभिज्ञ लोग स्थूल रंग की होली मना कर समय, धन, वस्तु और शक्ति व्यर्थ ही गवा रहे हैं।
आगे दीदी ने कहा कि होली अर्थात बीती सो बीती, जो हुआ उसकी चिंता ना करो और आगे के लिए श्रेष्ठ कर्म, ज्ञान, योग युक्त होकर करो, होली अर्थात होली हो गई, मैं आत्मा अब ईश्वर अर्पण होली, अर्थात अब जो भी कार्य करना वह परमात्मा के आदेश अथवा श्रीमत के अनुसार ही करना है। होली शब्द का अर्थ हिंदी में पवित्र है तो जो भी कर्म करना है किसी मनोविकार के वशीभूत होकर ना हो अर्थात शुद्ध पवित्र हो इस प्रकार से हम होली के त्यौहार के एक शब्द से ही अनेक शिक्षाएं ग्रहण कर सकते हैं। अतः होली इस ईश्वरीय स्नेह की याद दिलाती है की होली अर्थात पवित्र बनिए। बच्चों ने सांस्कृतिक प्रस्तुति दी। नंदिनी बहन ने कार्यक्रम के पश्चात सभी को मेडिटेशन कराया। कार्यक्रम में प्रेमलता शर्मा, सानू जैन, ममता शर्मा, रीना बहन, प्रियंका अग्रवाल, रमा शर्मा, आदि अधिक संख्या में भाई-बहन उपस्थित रहे।

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