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रविवार, 7 अगस्त 2022

संस्कृति संस्कार की अमूल्य पूंजी चंदेरी ,विश्व में पहचान दिलाती म.प्र. की ऐतिहासिक धरोहर

*जिंदा संस्कृति, संस्कार--हथकरघा पर निर्मित चन्देरी साड़ियां।* 
*(बुनकर तेरी कारीगरी को सलाम)*
*(राष्ट्रीय हथकरघा दिवस )* 
        *7 अगस्त 2022*
भोपाल/चंदेरी विशेष..
        ऐतिहासिक एवं पर्यटन नगर चंदेरी एवं हथकरघा का संबंध आज से नहीं 14वीं सदी के प्रथम दशक से निरंतर जीवित अवस्था में चला आ रहा है। इस शानदार और जानदार हथकरघा की दास्तान एक लंबे सफर का कामयाब फलसफा है। जिसे स्थानीय शिल्पकार एक नहीं अनेक उतार-चढ़ाव कई तरह की परेशानियों का सामना करने के बावजूद बड़े ही जतन से इसे सहेज कर अपने सीने से लगाए हुए हैं।
      चंदेरी की जीवन रेखा बुनकरों की आत्मा हमारी विरासत हमारी संस्कृति संस्कार की अमूल्य पूंजी चंदेरी की आन बान शान यही हथकरघा है। यह वही हथकरघा है जो हमारे अतीत का साफ सुथरा गौरवमयी चंदेरी साड़ियों की जीवन यात्रा के कामयाब  मंजिलों से रूबरू करता है। विदेश से लेकर देश के कोने कोने में चंदेरी की पहचान स्थापित करने का श्रेय यदि किसी को जाता है तो वह है स्थानीय हथकरघा और उस के माध्यम से निर्मित होती सुंदर कलात्मक चंदेरी साड़ियां।
        यह वही हथकरघा है जो अपने हुनर के दम पर एक बार नहीं कई बार प्रदेश देश स्तर पर ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा बिखेर कर सम्मान प्राप्त करने का अधिकारी बना है। एक नहीं अनेक प्रतियोगिताओं में यहां के दस्तकार हथकरघा के सहारे अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन के बल पर *राष्ट्रीय पुरस्कार* प्राप्त कर भारत के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। एक नहीं अनेक बनकर अपनी कार्यकुशलता के कारण प्रदेश स्तर पर स्थापित *संत कबीर पुरस्कार* प्राप्त कर चंदेरी के मान सम्मान को आगे बढ़ा चुके हैं।
       यह वही हथकरघा है जिसके माध्यम से नगर के बुनकर 1992 ईस्वी में गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर मध्य प्रदेश राज्य की ओर से राजपथ दिल्ली में निकलने वाली झांकी में जीवंत प्रदर्शन कर वाह-वाही लूट चुके हैं। यह वही हथकरघा है जिसके कारण *यूनिडो* जैसे विश्व स्तरीय संस्था *संयुक्त राष्ट्र टेक्सटाइल विकास संस्था* का आगमन चंदेरी के आंगन में हुआ था।  यह भी हथकरघा की उन्नति का एक उल्लेखनीय आयाम है कि नगर में *हेण्डलूम पार्क* का उदय हुआ। 
      यदि 2004 ईस्वी में चंदेरी हस्तशिल्प कला ने भारत के बाहर विदेशों में जैसे शारजहां में आयोजित *रमादान उत्सव* में अपनी अमिट छाप छोड़ी है तो उसके पीछे सफलता की कहानी दर्ज कराने वाला यही हथकरघा ही है जिसके माध्यम से यह सब संभव हुआ है। परंपरागत पेशेवर बुनकरों के हाथों का कमाल है कि 2010 ईस्वी दिल्ली में आयोजित *कॉमनवेल्थ खेल* में विजेता खिलाड़ियों के गले में डाला जाने वाला स्कार्फ चंदेरी हथकरघा पर ही तैयार हुआ था।

       यह बुनकरों एवं हथकरघा का मिलाजुला प्रतिफल है कि 1 मई 2019 ईस्वी को महामहिम राज्यपाल मध्यप्रदेश शासन आनंदीबेन पटेल का चंदेरी आगमन बुनकरों के निवास पर जाकर उनसे हथकरघा चंदेरी साड़ियों की बारीकियों को समझना बुनकर की स्मृतियों में आज भी अंकित है।
        चंदेरी पर्यटन और चंदेरी साड़ियां एक दूसरे के पूरक हैं। वगैर हथकरघा और चंदेरी साड़ियों के चंदेरी पर्यटन की कहानी आधी अधूरी समान है। चंदेरी पर्यटन को बढ़ावा देने में हथकरघा और उस पर नरम गरम नाजुक हाथों से सतरंगी धागों के ताना-बाना में लिपटी चंदेरी साड़ियों के अमूल योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। चंदेरी पर्यटन में हथकरघा एक अहम किरदार है अतएव उसका संरक्षण संवर्धन हेतु कृत संकल्पित होना शासन के साथ साथ हम सब का भी नैतिक दायित्व है। आइए आप और हम समाज में हथकरघा उत्पादों के प्रति जागरूकता लाने का सामूहिक प्रयास करें।

       इस भरी दुनिया में हम ना होंगे आप भी ना होंगे किंतु हथकरघा का सफर यूं ही बिना रुके चलता रहेगा। नगर के प्रत्येक भाग में बुनकरों के घरों में स्थापित हथकरघा से निकलती *खट खट* की आवाज चंदेरी पर्यटन पर आए सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने का हुनर बखूबी हथकरघा को हासिल है।

       इस प्राचीनतम नगर का भविष्य भी इसी हथकरघा एवं हस्तशिल्प पर टिका हुआ है। पीढ़ी दर पीढ़ी खानदानी खून से रिश्ता जोड़ता है यह हथकरघा इस नगर के सांप्रदायिक सौहार्द प्रेम सद्भाव भाईचारा की अनूठी अनुपम मिसाल है। इस सदभावना रूपी ताना-बाना को तैयार करता हथकरघा दिलों को जोड़ने का काम करते हुए कह रहा है कि 
*मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना* 
    *हिंदी हैं हम वतन हिंदुस्तान हमारा*

        सब कुछ मिलाजुला कर कहना यह है कि हथकरघा इस नगर की जीवित चलायमान जीवन रेखा होकर आन बान शान और हमारी पहचान है। नगर की अधिकतर आबादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस हथकरघा से जुड़ी हुई है। नगर की आजीविका का मुख्य साधन यही हथकरघा है अगर हम यूं कहें अतिशयोक्ति नहीं होगी कि *बुनकर हथकरघा को बिछाता है, हथकरघा पर सोता है और हथकरघा को ओढ़ता है।*

       आशय यह है कि शिल्पकार की रोजी-रोटी उसके परिवार का भरण पोषण का जरिया सब कुछ यहीं हथकरघा है। हथकरघा पर पीढ़ी दर पीढ़ी अनुभव प्राप्त बुनकरों द्वारा निर्मित की जा रही रंग-बिरंगी साड़ियों को प्रत्यक्ष रुप से देखना और हथकरघा से निकलती हुई *खट खट* की मीठी आवाज को सुनना एक अलग ही अनुभव है।

       हथकरघा दिवस पर नगर एवं ग्रामीण क्षेत्र के सभी हुनरमंद शिल्पकारों को *सलाम* जो आज भी पुश्तैनी हस्तशिल्प कला से मुंह न मोड़ कर पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त हुनर को हथकरघा के माध्यम से जीवित रखकर चंदेरी का मान सम्मान देश विदेश में कायम रखकर उसकी खुशबू चारों दिशाओं में बिखेर रहे हैं।

       याद रखना होगा कि 2009 ईस्वी में जब सिने अभिनेता आमिर खान एवं अभिनेत्री करीना कपूर बुनकरों के गांव प्राणपुर चंदेरी आकर बुनकर के घर गए थे हथकरघा एवं चंदेरी साड़ियों की बारीकियों को समझा था तब बुनकरों के हाथों के जुदाई कारीगरी को देखकर आमिर खान ने कहा था कि *देश के लोग हमें कलाकार बोलते हैं लेकिन हम आपको कलाकार कहते हैं।*
    *एक दिन तो गुजारिए चंदेरी में
             लेखक 
     मजीद खां पठान (सदस्य)
    जिला पर्यटन संवर्धन परिषद
          चंदेरी मध्य प्रदेश

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