एक लोटा जल व विल्वपत्रों से रीझने वाले देवता है भगवान शिव : वेदांत जी
विदिशा/गंजबासौदा ( दीपांशु नामदेव)
वेदांत आश्रम में समायोजित सप्त दिवसीय श्री रूद्र महायज्ञ एवं सरस संगीतमय श्री शिव महापुराण कथा के तृतीय दिवस, जगद्गुरु अनंतानंत द्वाराचार्य डॉ स्वामी रामकमल दास वेदांती जी महाराज ने भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ व तत्क्षण प्रसन्न होने वाले सर्वाधिक दयाशील देवता के रूप में प्रतिपादित किया है। उन्होंने कहा कि उपासना व पूजा में विभिन्न प्रकार की सामग्रियां व वस्त्राभूषण व नैवेद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। भगवान शिव इतने सरल देवता हैं कि वें एक लोटा जल व विल्वपत्रों से ही रीझ कर भक्त के जीवन में सारी सुख समृध्दिया भर देते हैं।
शिवलिंग भगवान का निराकार स्वरूप का प्रतिक है। शिवलिंग की जलहरी प्रकृति व लिंग पुरुष का प्रतीक है। प्रकृति और पुरुष के संयोग से ही संम्पूर्ण श्रृष्टि का सृजन होता है। जब ब्रम्हा और विष्णु अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानकर परस्पर युद्ध कर रहे थे उस समय भगवान शिव ने संम्पूर्ण विश्व को विनाश से बचाने के लिए स्वर्ण के समान प्रज्वलित एक स्तम्भ को प्रगट किया। इसका आदि और अंत ब्रम्हा और विष्णु भी नहीं लगा सके । भगवान शिव साकार रूप में प्रगट हो उनके युद्ध को शांत किया तथा प्रगट स्तंभ को अपना प्रतिक चिन्ह शिवलिंग बताया। इस स्तंभ को ब्रह्म और विष्णु ने विधिवत पूजा अर्चना की तभी से महत्वपूर्ण शिव रात्रि महोत्सव का शुभारंभ हुआ। जो फल वर्ष भर पूजा करने से प्राप्त होता है वही फल शिवरात्रि में दर्शन कर लेने मात्र से प्राप्त हो जाता है।
कथा क्रम को आगे बढ़ाते हुए स्वामी जी ने ऐसे गुणनिधी नाम के भक्त की कथा सुनाई इस फल के प्रताप से अगले जन्म में वह कलिंग देश का राजा बना। तथा शिवलिंग के प्रताप को जानकर उसने अपने राज्य में विभिन्न शिव मंदिरों को बनाकर अपनी प्रजा से दीप प्रज्वलित करवाएं। जिसके परिणामस्वरूप वही अगले जन्म में देवताओं का कोषाध्यक्ष कुबेर बना।
उसकी प्रार्थना पर भगवान शिव ने अलकापुरी के पास कैलाश पर अपना सुरम्य स्थान स्थापित किया। वे समस्त देवताओं को लेकर दिब्य शोभायात्रा के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान हुए। कथा क्रम में कैलाश पर विराजमान भगवान शिव की एक दिब्य झांकी प्रस्तुत की गई,जिसपर भजनों को श्रवण कर भक्त गण एवं माताएं बहनें उत्साह से परिपूर्ण होकर नृत्य कर उठें। संम्पूर्ण वेदांत आश्रम परिसर में ऊं नम शिवाय की भक्ति गूंजने से सारा वातावरण शिवमय हो गया। विदित हो कि 11 फरवरी को वेदांत आश्रम में रुद्राक्ष, चंदन व धूप के साथ साथ कई वृक्षो को आश्रम परिसर में रोपित किए जाएंगे।
आश्रम में रूद्र महायज्ञ के साथ साथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों की झांकियां भी सजाई गई है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें