भोपाल
देश के प्रख्यात गीतकार, संगीतकार, अभिनेता पीयूष मिश्रा ने नदियों की प्रेम कथा को कविता के माध्यम से प्रदर्शित किया। जल गंगा संवर्धन अभियान अंतर्गत सदानीरा समागम के दूसरे दिन भारत भवन में नदीनामा-कविताओं के पुनर्पाठ का आयोजन हुआ। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिलिशरण गुप्त, माखनलाल चर्तुवेदी, सुमित्रानंदन पंत, सुभद्रा कुमारी चौहान, विद्यापति, जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय, भारतेन्दुन हरिशचन्द, गजानन माधव मुक्तिबोध, भवानीप्रसाद मिश्र, केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, नरेश मेहता, जगदीश गुप्त, प्रभाकर माचवे, शिवमंगल सिंह सुमन, त्रिलोचन शास्त्री , गिरजाशंकर माथुर, हरिवंश राय बच्चन की जल को केन्द्र में रखकर रची कविताओं का पुनर्पाठ किया। देश के जाने माने अभिनेता, रंगकर्मी, लेखक, शिक्षाविद जैसे करन राजदान, राजीव वर्मा, अन्नू कपूर, सीमा कपूर, रूमी जाफरी, नवनी परिहार, स्वप्निल कोठारी ने किया।
नदी, जल संरचनाओं को लेकर पीयूष मिश्रा ने कहा कि नदी सिर्फ जल नहीं, माँ है, संस्कृति की जीवंत धारा है। जब नदी बहती है, तब सभ्यता गाती है। उसका रुकना केवल पानी का रुकना नहीं, हमारे जीवन-संगीत का मौन हो जाना है। नदी को संसाधन नहीं, संवेदना समझना होगा। अगर कविता, गीत और स्मृति बचानी है, तो पहले नदियाँ बचानी होंगी। पीयूष कहते हैं- "जहाँ पानी बहता है, वहीं आत्मा बसती है।" आज ज़रूरत है नदी से रिश्ता जोड़ने की, न कि सिर्फ उसे बचाने की। तभी हम भी बचे रहेंगे।निशब्द भेदा-एक जल-जगत की नृत्यगाथा
भारत भवन के अभिरंग सभागार में ख्यात नृत्यांगना व नृत्य संयोजक डॉ. शमा भाटे द्वारा निर्देशित नृत्य नाटिका नि:शब्द भेदा का मंचन हुआ। यह प्रस्तुति जल के भीतर विद्यमान जीवन के अनकहे, अनदेखे संसार की एक संवेदनशील एवं सशक्त कलात्मक अभिव्यक्ति थी। यह नृत्य नाटिका जलचर जगत जल में निवास करने वाले जीवों, उनकी संवेदनाओं, संघर्षों और परिवेश के साथ उनके अस्तित्व की पड़ताल करती है।
कथक नृत्य की शास्त्रीय परंपरा में रची गई यह प्रस्तुति सूक्ष्म मुद्राओं, गतियों, लय-संयोजन और संवेगों के माध्यम से उस संसार को मूर्त करती है, जिसे हम प्रायः भुला देते हैं। इस नृत्य संरचना में जल की तरलता, मत्स्यगति, जल में होने वाले सूक्ष्म कंपन और जलजीवों की सामूहिक और व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं को एक प्रतीकात्मक नृत्य भाषा में रूपांतरित किया गया। नृत्य संयोजन हमें स्मरण कराता हैं कि जलचर न केवल पारिस्थितिकी के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि वे भी संवेदनशील, प्रतिक्रियाशील और अस्तित्व के लिए संघर्षरत जीव हैं। डॉ. शमा भाटे का यह प्रयोग परंपरा और समकालीनता के बीच एक सेतु है जहाँ कथक की जानी-पहचानी शैलियाँ नए अर्थबोध और पर्यावरणीय विमर्श को स्वर देती हैं।
प्रवाह फिल्म समारोह में 10 से अधिक लघु फिल्मों का प्रदर्शन
सदानीरा समागम अंतर्गत दो दिवसीय प्रवाह फिल्म समारोह का शुभारंभ शनिवार प्रात: 10 बजे भारत भवन के अंभिरंग सभागार में हुआ। नदी, जलस्रोत, नदियों की वर्तमान स्थिति, पर्यावरण परिवर्तन तथा प्रकृति में जल और जीवन पर केन्द्रित 10 से अधिक लघु फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इस फिल्म समारोह में शहर के स्कूल, कॉलेज समेत पर्यावरण और सिनेमा प्रेमी उपस्थित थे। इस मौके पर फिल्म निर्देशक देवेन्द्र खंडेलवाल ने सदानीरा समागम के आयोजन के लिए वीर भारत न्यापस को बधाई देते हुए कहा कि आज नदी, पर्यावरण, प्रकृति को संरक्षित, संवर्धित करने के लिए जो प्रयास मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किये जा रहे है, वह सराहनीय है। फिल्म भी एक ऐसा सशक्त माध्यम से जो आमजन में जल चेतना जगाने का कार्य कर सकता है
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