आज पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाई जायेगी संत शिरोमणी नामदेव जी महाराज,
752 भी जयंती
भोपाल म.प्र.( विशेष)
संत नामदेव जी एक समाज सुधारक एवं राष्ट्रीय एकता के संदेशवाहक के रूप में जीवन पर्यंत अपने अलौकिक गुणों एवं कर्तव्य के द्वारा अनेकानेक महान परंपराएं अपनाते हुए देश की संस्कृति साहित्य एवं सभ्यता की अनुपम श्रंखला की विशिष्ट कड़ियों के साथ अपनी प्रमुखता प्रदर्शित की । संत नामदेव जी महाराज का जन्म कार्तिक शुक्ल एकादशी रविवार सन 1270 को सूर्योदय के शुभ मुहूर्त में पंढरपुर नामक ग्राम में महाराष्ट्र प्रांत में हुआ। संत नामदेव के पिता श्री दामा सेठ और माता गोगा बाई अत्यंत हरि भक्त, परम श्रद्धालु एवं धार्मिक प्रवत्ति के सत्पुरुष थे, और भगवान विट्ठल के प्रति अनन्य भक्ति रखते थे। इसका प्रभाव स्वयं नामदेव जी के जीवन पर विशेष रूप से पड़ा। सन 1291 में 21 वर्ष की उम्र में श्री नामदेव जी ने उस समय के संत समूह ज्ञानदेव, सोपानदेव, मुक्ताबाई , विशोबा खेचर, परिसा भगत , चोखा मेला आदि भक्तों की मंडली के साथ तीर्थाटन हेतु उत्तर भारत की ओर प्रस्थान किया। सन 1295 के आसपास यह संत मंडली समस्त उत्तर भारत में धर्म प्रचार करती हुई अयोध्या ,प्रयाग आदि प्रमुख तीर्थों का भ्रमण करके काशी पहुंची। नामदेव सबसे छोटे तो थे ही ज्ञानेश्वर के आग्रह पर निवृत्तिनाथ के आग्रह पर उनके शिष्य विसोबा खेचर को अपना गुरु बनाया और अंत तक भक्ति और ज्ञान की गंगा बहाते रहे। सन 1310 के आसपास द्वितीय भारत भ्रमण के अवसर पर सौराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान आदि प्रांतों में धर्म प्रचार हेतु गए। नामदेव जी जहां भी जाते अपनी मधुर एवं सरल वाणी से सर्वसाधारण जनता को अपनी ओर आकृष्ट करते जाते थे। संत नामदेव जी का इस प्रकार निश्छल संत स्वभाव के कारण आज भी इन प्रांतों में असंख्य नर नारी इनके अनुयायी हैं। इससे सिद्ध है कि नामदेव जी पर आज भी देश के भिन्न-भिन्न प्रांतों के रहने वाले करोड़ों मनुष्य कितनी श्रद्धा रखते हैं । संत नामदेव की तीसरी और अंतिम भारत भ्रमण की यात्रा महत्वपूर्ण और लंबे कार्यकाल की है । इन्होंने सन 1325 से 1343 तक सारे पंजाब का भ्रमण किया। गुरदासपुर जिले के घुमान गांव में नामदेव नगर बसाकर कई गुरुद्वारा ( मंदिर) बना कर कई वर्षों तक वहां बाबा नामदेव के नाम से निवास किया।
संत नामदेव जी ने स्थानीय बोलचाल भाषा में अनेकों अभंगो की रचना की इनमें से 61 अभंग नामदेव जी के 200 वर्षों पश्चात सिख संप्रदाय के संस्थापक महान गुरु श्री नानक देव जी महाराज ने अपने अनुपम धर्म ग्रंथ साहिब में सम्मिलित किए। जिन्हें आज भी प्रत्येक सिख बड़ी श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं।
इस प्रकार संत नामदेव जी महाराज समस्त भारत में धर्म का महत्व और ईश्वर भक्ति का उपदेश देते हुए सन 1343 में 73 वर्ष की अवस्था में पंढरपुर महाराष्ट्र लौटकर 1350 में आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी बुधवार को पंढरपुर में श्री विट्ठल भगवान के चरणों में अपने परिवार के साथ समाधिस्थ हुए। संत नामदेव जी धार्मिक, प्रांतीय और भाषायी संकीर्णता से अत्यंत ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता को स्थापित करते हुए महामानव के रूप में किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना मानव सेवा को सर्वोपरि मानते हुए एक राष्ट्रीय संत - शिरोमणि का पद प्राप्त किया।
पवित्राणि तीर्थानि कृत्वा स्व -संगात, चरित्राणि कृत्वा च लोकोत्तराणि ।
पुनर्यो ययी पंढरी क्षेत्र राजम, समाधि स्थितं तं भजे नामदेव ।।
- प्रस्तुति -
अजय कुमार नामदेव
महासचिव- मध्य प्रदेश
अखिल भारतीय नामदेव क्षत्रिय महासंघ नई दिल्ली
साधु प्रसाद नामदेव
पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष
अखिल भारतीय नामदेव क्षत्रिय महासंघ नई दिल्ली
नामदेव समाज विकास परिषद,भोपाल, मध्य प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें