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शनिवार, 22 जून 2024

11 साल बाद होंगे सहकारी संस्थाओं के चुनाव मध्यप्रदेश में , हलचल तेज

 11 साल बाद होंगे सहकारी संस्थाओं के चुनाव मध्यप्रदेश में , 26 जून से 9 सितंबर तक चलेगी प्रक्रिया*

भोपाल, 
 हाई कोर्ट के निर्देश पर अब 11 वर्ष बाद राज्य में सहकारी संस्थाओं के चुनाव होंगे। इसके लिए राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने 4 चरण में मतदान कराने का कार्यक्रम जारी किया है। इसके अनुसार 26 जून से 9 सितंबर तक इसकी प्रक्रिया चलेगी। सदस्यता सूची जारी करने के बाद 8, 11, 28 अगस्त और 4 सितंबर को मतदान होगा। मतदान के तत्काल बाद मतगणना होगी।
सबसे पहले प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों और विभिन्न संस्थाओं में भेजे जाने वाले प्रतिनिधियों के चुनाव होंगे। इसके आधार पर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल का चुनाव होगा। अभी सभी संस्थाओं में प्रशासक नियुक्त हैं, जो प्रत्येक 5 वर्ष में चुनाव कराने के प्रावधान के खिलाफ है। प्रदेश में 4,534 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इनके चुनाव वर्ष 2013 में हुए थे। इनके संचालक मंडल का कार्यकाल वर्ष 2018 तक था।
इनके चुनाव के तत्काल बाद विधानसभा चुनाव को देखते हुए तत्कालीन शिवराज सरकार ने इन्हें टाल दिया। इसके बाद सत्तारूढ़ हुई कमल नाथ सरकार ने किसान कर्ज माफी योजना और लोकसभा चुनाव के कारण इसे आगे बढ़ाया और जिला बैंकों में प्रशासक नियुक्त कर दिए। तब से ये चुनाव टलते आ रहे हैं। इस बीच मामला हाई कोर्ट में पहुंच गया। हाई कोर्ट ने चुनाव कराने के निर्देश दिए, जिस पर सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने कार्यक्रम भी जारी कर दिया लेकिन लोकसभा चुनाव के कारण ये फिर टल गए।

अब नया कार्यक्रम जारी कर दिया गया है। चुनाव के लिए पहले सदस्यता सूची तैयारी होगी। इसमें वे किसान, जिन्होंने समय पर अपना कर्ज नहीं चुकाया और डिफाल्टर की श्रेणी में हैं, भाग नहीं ले पाएंगे। सदस्य मतदान के माध्यम से संचालक चुनेंगे। इनमें से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष का चुनाव होगा।
साथ ही जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के लिए प्रतिनिधि भी चुने जाएंगे। इनमें से संचालक मंडल का चुनाव होगा, जिनमें से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनेंगे। इन्हीं में से अपेक्स बैंक के लिए प्रतिनिधि भेजे जाएंगे, जिनसे संचालक मंडल बनेगा।

*अपात्र समितियों के नहीं होंगे चुनाव*
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि उन समितियों के चुनाव नहीं हो पाएंगे, जो विभिन्न कारणों से अपात्र हैं। इसमें खाद-बीज की राशि न चुकाने, गेहूं, धान सहित अन्य उपजों के उपार्जन में गड़बड़ी या अन्य कारणों से अपात्र घोषित संस्थाएं शामिल हैं।
गैर दलीय आधार पर चुनाव सहकारी समितियों के चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं, लेकिन इनमें राजनीतिक दलों का पूरा दखल रहता है। भाजपा और कांग्रेस के सहकारिता प्रकोष्ठ हैं, जो चुनाव की पूरी जमावट करते हैं। अपनी विचारधारा से जुड़े नेताओं को प्राथमिक समितियों का संचालक बनाकर जिला और राज्य स्तरीय समितियों में भेजा जाता है और फिर बहुमत के आधार पर अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनवाया जाता है।

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